Tuesday, March 27, 2007

अनुराग मुस्कान: अथ श्री क्रिकेट कथा अनंता

अथ श्री क्रिकेट कथा अनंता
-अनुराग मुस्कान

अपने बेटे को क्रिकेट की भारी भरकम किट के साथ स्टेडियम जाता देख कर पड़ोस वाले शर्माजी गर्व से छाती फुलाते हुए बोले- 'देखना अनुराग जी, मेरा बेटा एक दिन कितना बड़ा मॉडल बनेगा।' मैंने कहा- 'ठीक कहा आपने, आजकल तो टीम इंडिया में कोई खिलाड़ी ऐसा नहीं है जो किसी का रोल मॉडल बन सके। मैं आपके बेटे को शुभकामनाएं देता हूं कि वह सिर्फ क्रिकेट का ऑलराउंडर ही न बने बल्कि क्रिकेट में भविष्य तलाशने वाले युवाओं का रोल मॉडल भी बने।' इतना सुनते ही शर्माजी भड़क गए। बरस पड़े- 'भाड़ में गया क्रिकेट, मैं अपने होनहार को क्रिकेट का रोल मॉडल नहीं विज्ञापनों और फिल्मों का रोल मॉडल बनाने की बात कर रहा हूं। शायद आपका सामान्य ज्ञान थोड़ा कमजोर है, आजकल मॉडलिंग और फिल्मों में ब्रेक पाने का शार्टकट क्रिकेट के मैदान से ही होकर जाता है। बड़े-बड़े ऑफर खुद आकर घर की चौखट चूमते हैं। फिल्म इंडस्ट्रीज में आजकल वैसे ही बड़ा स्ट्रगल है। इससे अच्छा तो क्रिकेट खिलाड़ी बनकर आदमी मैदान में बस दो-चार चौके-छक्के ठोकने का स्ट्रगल भर कर ले, फिर देखो, फिल्म इंडस्ट्रीज में न सही विज्ञापन जगत में तो उसकी लाटरी लग गई समझो।'
मैं स्तब्ध होकर उन्हे सुन रहा था और वह धाराप्रवाह जारी थे-
'आपको क्या लगता है मुस्कान जी कि टीम इंडिया के खिलाड़ी क्रिकेट खेलने के लिए टीम में शामिल हुए हैं? यह एक बहुत बड़ी गलतफहमी है, अरे, टीम इंडिया के खिलाड़ियों से कहीं ज्यादा क्रिकेट तो गली-मौहल्ले के बच्चे ईंटों का विकेट बनाकर लकड़ी के फट्टे और किरमिच की गेंद से खेल लेते हैं। न जाने कितने ही होनहार खिलाड़ी टीम इंडिया से बाहर बैठ कर अपनी बारी के इंतजार में ऐसी-तैसी करा रहे हैं लेकिन मजाल है जो उन्हे कभी मौका मिले... जानते हैं क्यों... क्योंकि उनकी शक्ल-ओ-सूरत मॉडलिंग के मापदंड़ों पर खरी नहीं उतरती। वो सब अयोग्य हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी नहीं हैं। सिर्फ क्रिकेट ही खेलना जानते हैं। यह नहीं जानते कि धनी होने के लिए पहले बहुमुखी प्रतिभा का धनी होना जरूरी है। जेब गर्म रखने के लिए खिलाड़ी का 'सबसे बड़ा खिलाड़ी', मेरा मतलब है ऑलराउंडर होना बहुत जरूरी है... मुझे अपने बेटे को कोरा क्रिकेटर बनाकर उसका भविष्य चौपट थोड़े ही करना है। आप खुद ही सोचिए, दूसरी टीमों के खिलाड़ी भले ही लाख दर्जे अच्छा खेलते हों लेकिन एक टुच्चा सा भी विज्ञापन नहीं किसी के पास... क्या मार्केट वैल्यू है... सिफर भी नहीं। एक हमारे रणबांकुरों को देखिए, रनों से ज्यादा विज्ञापन हैं उनके खातों में... मेरी समझ में नहीं आता कि जब हमारे हॉकी खिलाड़ी हॉकी नहीं खेलते, फुटबॉल खिलाड़ी फुटबॉल नहीं खेलते तो क्रिकेट खिलाड़ियों पर ही क्रिकेट खेलने का दबाव क्यों बनाया जाता है... जबकि विज्ञापन और फिल्मों में क्रिकेट से कहीं ज्यादा पैसा है... क्या समझे आप?'
और मैं द्रविड़ की तरह सब कुछ समझ जाने के अंदाज में सिर हिला कर रह गया।

(28-03-2007 को दैनिक 'हिन्दुस्तान' में प्रकाशित)

4 comments:

Punit Pandey said...

बहुत खूब मुस्‍कान जी, आपके लेख नें मुस्‍कुराहट दे ही।
पुनीत
HindiBlogs.com

ghughutibasuti said...

बहुत खूब लिखा है आपने।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

सही है, अब हम भी समझ गये. :)

अनूप शुक्ल said...

हां , हम भी सर हिलाकर समझे गये।