Thursday, April 12, 2007

सीडी की महिमा अपार रे...


सीडी की महिमा अपार रे...


राजनैतिक पार्टियां जिस उत्साह और उत्तेजना के साथ सीडी के धंधे में हाथ-पैर मार रही हैं उसे देखकर मुझे शाहरुख खान और बिग बी का भविष्य डावांडोल नजर आने लगा है। राजनैतिक पार्टियों से संबंधित सीडियां किसी भी सुपर हिट फिल्म से ज्यादा व्यवसाय कर रही हैं। राजनैतिक सीडियों में मुनाफे के अप्रत्याशित उछाल को देख मुझे तो यह भी डर है कि किसी रोज़ मुंबइया फिल्म निर्माता-निर्देशक फिल्में बनाना छोड़कर राजनैतिक पार्टियों के लिए सीडी न बनाने लग जाएं। आजकल सीडी में सैल्यूलाइड से ज्यादा ग्लैमर है। वैसे भी अपने शाहरुख खान और बिग बी को स्टार बनने के लिए लंबा-चौड़ा संघर्ष करना पड़ा था लेकिन इस मुई सीडी का कॉस्टिंग कॉउचाना अंदाज देखिए कि बंगारू लक्ष्मण और जूदेव से लेकर संजय जोशी तक रोतों-रात स्टार गए थे। सीडी ने राजनीति में न जाने कितने ही लोगों को स्टारडम दिया है। नतीजा यह कि आज प्रकाश जावड़ेकर और वैंकेया नायडू से ज्यादा लोग बंगारू लक्ष्मण, जूदेव, संजय जोशी आदि को जानते और पहचानते हैं। आम आदमी के जीवन में सीडी कि महत्ता केवल सीडी पर फिल्म देखने तक ही सीमित है, वह भी तब जब सीडी पाइरेटेड हो। दूसरी ओर राजनीति में सीडी बहुआयामी होने का दर्जा पा गई है। कह सकते हैं कि सीडी एक फायदे अनेक। सीडी के दांत, खाने के और दिखाने के और। आप सीडी देख और दिखा तो सकते ही है साथ ही सीडी को अचूक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल भी कर सकते हैं। सीडी न हुई ब्रम्हास्त्र हो गई। भूल गए आप, अपने मदनलाल खुराना साहब सीडी के दम पर ही चक्रधारी बन बैठे थे, उन्होने अपनी अंगुली में सीडी को सुर्दशन चक्र की तरह फंसाकर बीजेपी पे दे दनादन हमले किए थे। हालांकि वह बीजेपी का बिगाड़ कुछ नहीं पाए, अलबत्ता अपना पत्ता जरूर कटवा बैठे। आजकल सीडी भूलकर राजनीति की मचान पर चढ़ने की सीढ़ी ढूंढ़ रहे हैं। मुझे याद है पहले चुनाव के टाइम में मतगणना के दौरान पब्लिक को उलझाए रखने के लिए टीवी पर बीच-बीच में फिल्में दिखाई जाती थीं। यह ट्रेंड थोड़ा सा बदल गया लगता है, अब पब्लिक को उलझाने के लिए फिल्मों की जगह सीडियां दिखाई जाती हैं। जैसे उत्तरप्रदेश में चुनाव के दौरान बीजेपी ने दिखवाई है। वह तो सीडी पब्लिक तक पहुंचने से पहले ही उस पर चुनाव आयोग की कैंची चल गई वरना कुछ विलेन टाइप लोग बेवजह हीरो बन बैठते। अभी बीजेपी की सीडी की एबीसीडी भी ढंग से समझ नहीं आई थी कि एक खबरिया चैनल ने पैसा देकर टिकट खरीदते कुछ 'कद्दावर' नेताओं की सीडी उतार ली। अब चुनाव आयोग टेंशन में है। आचार संहिता का उल्लघंन करती पार्टियों से निपटे, चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराए या बैठे कर सीडी पर फिल्में देखे, क्या-क्या करे बेचारा। ऐसे में मेरा एक कीमती सुझाव काम दे सकता है, वह यह कि चुनाव के आसपास राजनैतिक पार्टियों के हैवी सीडी रिलीज को देखते हुए चुनाव आयोग को अपने विभाग में सेंसर बोर्ड की भी एक ईकाई भी गठित कर लेनी चाहिए। वैसे, सीडी के लाभ केवल राजनीति तक ही सीमित न रहें इसलिए इस नाचीज ने सीडी के कुछ और भी नायाब उपयोगों पर प्रकाश डालने की कोशिश की है, नाचीज को लगता है कि सीडी भारतीय क्रिकेट के उत्थान में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। क्रिकेट में सीडी के उपयोग क्रमवार इस प्रकार हैं- 1. सबसे पहले तो टीम इंडिया के हालिया मैचों की सीडी बनाकर क्रिकेट में भविष्य तलाश रहे बच्चों और युवाओं को बार-बार दिखानी चाहिए, जिससे वो अच्छी तरह समझ सकें की खराब क्रिकेट कैसे खेला जाता है और ऐसा खेलने से कैसे बचना चाहिए। इससे एक बार फिर क्रिकेट के अच्छे दिन लौटने की उम्मीद गर्भवती हो सकती है। 2. टीम के नए मैनेजर एवं कोच रवि शास्त्री को उन्ही के मैचों की पुरानी सीडियां दिखाई जाएं जिससे वह अपनी और टीम इंडिया वाली सीडी का तुलनात्मक अध्ययन करके समझ सकें की अब टीम इंडिया के खिलाड़ियों को कौन-कौन सी टिप्स नहीं देनी हैं। 3. इस वर्ल्ड कप के फाइनल वाले दिन उन्नीस सौ तिरासी के वर्ल्ड कप फाइनल की सीडी केबल आपरेटरों को इस अपील के साथ मुफ्त बंटवा दी जाए कि वह राष्ट्रहित में वर्ल्ड कप-2007 का प्रसारण बाधित करके वर्ल्ड कप-1983 की सीडी ही चलाएं। इससे क्रिकेट को लेकर खिलाडियों की मर चुकी आत्मा और क्रिकेट प्रशंसकों की मर चुकी उम्मीदों की आत्मा को थोड़ी शांति मिल सकेगी। अभी क्रिकेट में सीडी की महत्ता के प्रथम अध्याय तौर पर इतने ही सुझावों को अमल में लाकर अप्रत्याशित लाभ लिया जा सकता है। दूसरा अध्याय फिर कभी।
(आज नवभारत टाइम्स में प्रकाशित)

No comments: