Saturday, April 14, 2007

कुत्ता मत कहो...प्लीज..!

कुत्ता मत कहो...प्लीज..!

रात्रिभोज के बाद हम लोग टीवी देख रहे थे। टीवी पर जयपुर से कुत्तों के सामूहिक विवाह समारोह की खबर आ रही थी। शादी का कार्ड भी दिखाया गया। लेडीज संगीत, मेहंदी की रस्म, पाणिग्रहण संस्कार, प्रीतिभोज और विदाई समारोह, सभी का कार्यक्रम था। बीच-बीच में कुत्तों के कोरियोग्राफर और ड्रेस डिजायनर बता रहे थे कि उन्होने कुत्तों को इंसान जैसा बनाने की ट्रेनिंग देने के लिए गधों की तरह मेहनत की है। कुत्ते तीन महीने से अपने विवाह की तैयारी के लिए ट्रेनिंग पा रहे थे, इस दौरान उनके खाने पीने का मैन्यू भी प्री-डिसायडेड था। कुल मिला कर कुत्ते किसी रियलिटी शो के प्रतिभागियों जैसा ठाठ काट रहे थे। वह तो ऐन मौके पर हिन्दु रीति-रिवाजों के मखौल का हवाला देकर शिव सैनिकों ने इस समारोह के अभूतपूर्व होने में खलल डाल दिया, नतीजतन न जाने कितने ही कुत्ते कुंवारे रह गए। रात्रिभोज पर सपरिवार पधारे मेरे मित्र यह खबर देखकर इमोशनल हो गए, बोले- 'हमारा मार्शल भी इन डॉगीज् से कुछ कम नहीं है।', 'अच्छा, आपके कुत्ते का नाम मार्शल है।', मेरा इतना कहना था कि उनकी सुपुत्री ने मुझे कच्चा खा जाने वाली निगाहों से घूरते हुए गुर्राकर कहा, 'अंकल, मार्शल को कुत्ता मत कहिए...प्लीज! ही इज लाइक ऑवर फैमिली मेंबर।'
देख रहा हूं कि डॉगी लोग जब से फैमिली मेंबर बने हैं तब से कई फैमिली मेंबरों की स्थिति डॉगी जैसी हो गई है। एक बानगी देखिए। शहर में सर्कस लगा है। मम्मी-पापा, माइकल, स्वीटी और रैम्बो, सब सर्कस देखने जा रहे हैं। नाम सुन कर कनफ्यूज मत होइए, माइकल बड़े बेटे का नाम है, स्वीटी माइकल की छोटी बहन है और रैम्बो पालतू कुत्ता माफ कीजिएगा पैट डॉगी का शुभनाम है। घर में ताला नहीं लगा सकते। समय बहुत खराब चल रहा है। चोरी-डकैती का डर है। इसलिए घर की रखवाली के लिए बूढ़े और बीमार मां-बाप को छोड़े जा रहे हैं। डॉगी को सर्कस में साथ ले जाना भी जरूरी है क्योंकि वह स्वीटी के बगैर आधे घंटे भी नहीं रह सकता। दोनों एक ही कोल्ड ड्रिंक शेयर जो करते हैं। बड़ी मुश्किल से डीएम साहब के पीए से फोन करवा कर सर्कस के मैनेजर से रैम्बो को सर्कस पंडाल के अंदर ले जाने की परमीशन हासिल की है। रैम्बो सिर्फ सर्कस देखने ही नहीं बल्कि मल्टीप्लैक्स में फिल्म देखने भी इसी तरह जाता है।
मार्शल कह लीजिए या रैम्बो, कुत्ते आजकल स्टेटस सिंबल बन गए हैं। आपकी कार कितनी भी महंगी क्यों न हो वह तब तक बेकार है जब तक उसकी अधखुली खिड़की में से कोई झबरा, चपटा अथवा पुंछकटा कुत्ता अपना मुखमंडल बाहर निकाल कर पूरी दुनिया को जीभ न चिढ़ा रहा हो। अलसीशियन और पॉमेरीयन डॉगीज की जाति, वर्ग, बनावट, कद और काठी अपने मालिक की हैसियत का पैमाना है। औलाद भले ही अपने कर्मों से माता-पिता की नाक कटवा दे लेकिन किसी दुर्लभ विदेशी प्रजाति की ब्रीड के डॉगी अपने मालिक का सिर कभी शर्म से नहीं झुकने देते। और डॉगी अगर किसी दो दुर्लभ प्रजातियों की क्रास ब्रीड का हो तो मालिक को अपने होनहार बेटे से ज्यादा डॉगी पर गर्व हो सकता है।
मेरे एक मित्र निरंतर मुझे पर एक डॉगी पाल लेने का दबाव बनाते रहते हैं। मेरी सामाजिक मान्यता में वह एक डॉगी की कमी का हवाला देते हुए तर्क सहित कहते हैं, 'अपने चारों ओर नजरें घुमाइए जनाब, देखिए, आपके चारों ओर कूड़ा ही कूड़ा और गंदगी ही गंदगी है। अपनी बेफिक्री और लापरवाहियों के चलते आप इस प्रदूषित समाज में रहने के अभ्यस्त भी हो चुके हैं, ऐसे में एक विदेशी नस्ल का डॉगी ही आपको इस कूड़े के ढ़ेर से ऊपर उठा कर मैट्रोपालिटियन कल्चर की हाईप्रोफाइल सोसाइटी में सम्मानित दर्जा दिला सकता है।' अब दूसरे छोर पर बंधे डॉगी की जंजीर पकड़कर आप भवसागर पार कर सकते हैं।
वैसे भी डॉगी आजकल बहुत पहुंच वाले हो गए हैं। इंसान जब से इंसान के लिए समस्या बना है तब से डॉगी समाधान बन गए हैं। डॉगी लोग को खतरा सूंघने की जिम्मेदारी देकर ही तो हम और आप आतंकवाद की तरफ से बेफिक्र हो लिए हैं। नतीजा यह कि इंसान अब इंसान से ज्यादा डॉगी पर भरोसा करता है। खैर साहब, सबक यह लीजिए कि आज से गली के कुत्ते को भी कुत्ता मत कहिए, उसे डॉगी के संबोधन से पुकारिए क्योंकि जिस तेजी से इंसान कुतों को, मेरा मतलब है डॉगीज् को प्रमोट कर रहा है उसे देखकर लगता है कि वह दिन अब दूर नहीं जब कुत्तों के सामने लोकतंत्र की बसंती झमाझम नाचेगी और इंसानों का काम केवल ढ़फली बजाना रह जाएगा।

6 comments:

Reetesh Gupta said...

बहुत खूब !!!! मजा आ गया ....

अच्छा लिखा है

rkumar said...

किसी खानदानी कुत्ते ने पढ़ लिया तो उसे कष्ट हो सकता है, वैसे बाकी ठीक है।
राजकुमार

ghughutibasuti said...

मजाक अपनी जगह है । उस लिहाज से लेख अच्छा है । किन्तु कुत्ते मनुष्य से सदा अधिक प्रेम ,स्नेह करने वाले होते हैं । कभी आपने सुना है कि किसी कुत्ते ने बिमारी, गरीबी या दुर्भाग्य आने पर मनुष्य का साथ छोड़ा है ? जबकि मित्र व परिवार के सदस्य तक साथ छोड़ सकते हैं । मैं तो यह कह सकती हूँ कि जब किसी मनुष्य को कुत्ता कहा जाता है तो कुत्ते की ईमानदारी , वफादारी को देखते हुए यह कुत्ते का अनादर है ।
घुघूती बासूती

आशीष कुमार 'अंशु' said...

KUTTA PURAN PASAND AAYA>

सोतड़ू said...

इसमें कोई दो राय नहीं कि तुम अच्छा लिखते हो... लेकिन इस वक्त मैं तुम्हारे विषय पर टिप्पणी कर रहा हूं।
कुत्ते का सामाजिक महत्व हमेशा से रहा है (हां वो आदमी से महत्वपूर्ण हो जाए तो ऐतराज़ जायज़ है) लेकिन मुझे लगता है कि कुत्ता और गधा हमारे समाज में इतने रचे बचे हैं कि जब आदमी नौकर (बोले तो पत्रकार भी शामिल)ढूंढता है तो वो उसमें यही दो गुण ढूंढता है। सिर उठाए बिना काम करने का और अपनी जात-बिरादरी बल्कि ख़ुद को भी भूल वफ़ादारी का। मेरा अनुभव तो कहता है कि अगर आपमें ये दो गुण न हों तो आपका नौकरी करना मुश्किल हो सकता है। नौकरी कर भी लें तो तरक्की करना आसान नहीं। इन दोनों को छोड़ तरक्की करनी ही है तो आपको एक तीसरे जन के गुण लाने पड़ेंगे, गुर सीखने पड़ेंगे मौसी (लोमड़ी)।

तुम बुरा मत मानना भाई कुछ तुम जैसे लोग भी तरक्की कर जाते हैं (अच्छी शक्ल, अच्छी ज़ुबान, अच्छे आदमी होने के चलते) लेकिन ये अपवाद है।

Dr. Nazar Mahmood said...

good enough
keep it up
various dogs will get encourage.
Happy Dipawali