कंडोम, बिंदास बोल...!
-अनुराग मुस्कान
एक जमाना था जब हम अपने बड़े-बूढ़ों को यह तक बताने में शर्माते थे कि अब हमारी उम्र हो चली है, हमारा शादी करने का मन कर रहा है। हमारी शादी का महूर्त तब दो ही सूरतों में निकलता था, या तो रिश्तेदार हमारे माता-पिता से कहते थे कि अब तो बेटे की शादी कर ही दो, बहू कब ला रहे हो, अब तो शहनाई बजवा ही लीजिए वगैराह-वगैराह, या फिर कोई अड़ोसी अथवा पड़ोसी शिकायत लेकर चला आए कि, 'भाई साहब, हम बहुत दिनों से बर्दाश्त कर रहे हैं लेकिन अब पानी सिर से ऊपर उठ चुका है, आपके बेटे अनुराग ने हमारी बेटी शालिनी का कॉलेज आना-जाना दूभर किया हुआ है, हम नहीं चाहते कि यह बात आगे बढ़े इसलिए बेहतर होगा आप इसे अपने स्तर पर निपटा लें, कोई अच्छी सी लड़की देखकर उसकी शादी कर दीजिए अब तो।', और हमारे माता-पिता सचमुच हमारी शादी को लेकर गंभीर हो जाते थे।
अब जमाना बदल गया है। बेटी मां से कहती है, 'मॉम, कान्ट यू अंडरस्टैंड, आई वाना गैट मैरिड...राहुल कब से वेट कर रहा है।' बेटी मां को छोड़कर राहुल के साथ अमेरिका में सेटल होने के लिए बेताब और बेकरार है। लड़की को मां और राहुल से ज्यादा इंटरेस्ट अमेरिका में है। क्या करें अमेरिका का क्रेज छूटता ही नहीं। अब तो दिमाग में भी भरतीय और अमेरिकी सोच का केमिकल लोचा होने लगा है। यह क्रास ब्रीड सोच है। हम अमेरिका की तरह बिंदास हो जाना चाहते हैं। टीवी बिंदास हो जाने की वकालत कर रहा है। वह कह रहा है कि अब 'कंडोम' भी बिंदास बोलो, इसमें शर्म कैसी? कुली से लेकर वकील तक अपने दब्बू दोस्त को कंडोम बिंदास बोलने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। एड्स से लड़ने का यह एक बहुत बड़ा कैम्पेन है। करोड़ों इधर से उधर हुए हैं लोगों को एड्स से बचाने के लिए। हमने लाख तरक्की कर ली हो, फ्लाईओवर बना लिए हों, मल्टीप्लेक्स खोल लिए हों, मैट्रो दौड़ा दी हो, लेकिन अफसोस कि हम कंडोम बिंदास बोलना नहीं सीख पाए। यह हमें आजकल टीवी सिखा रहा है। टीवी सबकुछ सिखा ही देता है। हमारी हर दकियानूसी सोच पर टीवी हावी है। टीवी हमें बताता है कि आप अगर अमेरिका नहीं जा सकते तो अमेरिका बन जाइए। अमेरिका बनने का पहला पाठ ही यही है, कंडोम...बिंदास बोल।
बच्चे यह पाठ खूब याद कर रहे हैं। कल शहादरा से लौटते समय मेरा तीन साल का पप्पू नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कुलियों को देखते ही चिल्लाने लगा, 'कंडोम...बिंदास बोल...।' हालात मेरे लिए बेहद शर्मनाक हो गए। सुना है कि पड़ोस वाले गुप्ता साहब ने भी अपने उन्नीस वर्षीय बबलू की मार-मार कर टांग तोड़ दी। बबलू ने मौहल्ले वाली कैमिस्ट की दुकान पर जाकर बिंदास बोल दिया- कंडोम। फिर क्या था मौहल्ले भर में बात फैल गई। बड़ी थू-थू हुई गुप्ता जी की। मेरा पप्पू तो खैर मासूम है लेकिन गलती गुप्ता जी के बबलू की भी नहीं है, उस बेचारे को क्या पता की टीवी के विज्ञापन में बिंदास कंडोम बोल रहा कुली और वकील बालिग है या नाबालिग, शादीशुदा है अथवा कुंवारा। वह तो इतना ही समझ पाए हैं कि कंडोम जब भी बोलना है बिंदास बोलना है।
(12-12-2006 को 'हिन्दुस्तान' में प्रकाशित)
3 comments:
बिन्दास लिखा है बोस.
समस्या है. टीवी व नेट समय से पहले बालिग कर रहे है. वैसे भी कण्डोम वर्षो से गुब्बारे का विकल्प रहा है. सरकार मुफ्त जो बाँटती रही है.
अनुराग भाई,
ये वक्त की जरूरत है, स्थिती जितनी दिख रही है उससे ज्यादा भयावह है। मेरा भाई स्वास्थ्य विभाग मे कार्य करता है।
उसके अनुसार एड्स रोगीयो की संख्या जितनी बतायी जाती है रोगी उससे कई गुना ज्यादा है। उसके अनुसार उनका विभाग ही ऐसे आंकड़ो को कम करके बताता है।
और स्थिती ग्रामीण भागो मे और भी ज्यादा खराब है। विदर्भ के पिछड़े आदिवासी हिस्से मे भी एड़्स से मौते हुयी है इनका प्रत्यक्ष कारण तो टी बी था लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से एड्स था।
सरकारी आंकडो मे ये मौते टी बी से हुयी मौते के रूप मे दर्ज हुयी। ये तो एक उदाहरण है। सारे भारत मे और भी और भी उदाहरण मील जायेंगे।
आप या तो जागरूकता बढा लिजीये याअपनी संस्कृती का रोना रोते रहीये ! फैसला आपके हाथ मे है।
बाबा रामदेव का संयम सुनने मे अच्छा लगता है, लेकिन कोई प्रयोग नही करता। कंडोम ही एक सरल और सफल उपाय है। प्रचार जरूरी है जागरूकता बढाने के लिये और झीझक मिटाने के लिये।
गुप्ता जी को तो खुश होना चाहिये कि बेटा असुरक्षित सेक्स की जगह सुरक्षित सेक्स की कोशीश कर रहा है। वो केमीस्ट से कंडोम नही मांगता तो उसका क्या बीगाड़ लेते गुप्ता जी ?
ऐसे संवेदीनशील मुद्दे मे अमरीका या अमरीकी संसकृती कहां से आ गयी समझ मे नही आ रहा है ?
चलते चलते एक बात और , हाल ही मे महाराष्ट्र मे एक पोलीयो का मामला सामने आया है। मरीज बच्चा गरीब तबके का नही एक शिक्षित परिवार से था जो सरकारी पोलीयो अभियान को बकवास और गरिबो के लिये मान कर चलता था।
लगे रहो गुरु. तलाशते-तलाशते हम भी यहां तक पहुंच गए. मजे में?
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